Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter – आज की इस पोस्ट में हम आपको चाणक्य नीति के आठवें अध्याय के बारे में बता रहें है। इससे पहले हम इस ब्लॉग पर चाणक्य नीति के सात अध्याय प्रकाशित कर चुके है।
चाणक्य नीति एक महान ग्रंथ है, इसमें आचार्य चाणक्य जी ने अपने विचार व्यक्त किए है, जो कि आज समाज की सच्चाई को बताते है। तो आइए पढ़ते है इस पोस्ट में चाणक्य नीति के आठवें अध्याय, Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter के बारे में,
Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter – चाणक्य नीति, आठवां अध्याय
1.जो लोग केवल धन की ही इच्छा रखते है वो लोग निम्न कोटी के होते है, जो लोग धन और इज्जत दोनों की इच्छा रखते है वो लोग मध्यम वर्ग के लोग होते है और जो लोग केवल आदर सम्मान की ही इच्छा रखते है वो लोग उत्तम कोटी के होते है, क्योंकि उनके लिए धन का कोई विशेष महत्व नही होता है।
2.गन्ना, पानी, दूध, कंधमूल, फल, पान और दवाइयों का सेवन करने के बाद भी स्नान और धर्म कार्य किए जा सकते है।
3.दीपक अंधकार को मिटाता है और कालिख पैदा करता है, इसी प्रकार मनुष्य जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान उत्पन्न होती है।
4.अच्छे गुणों वाले व्यक्ति को ही धन देना चाहिए, गुणहीन को धन नही देना चाहिए, जैसे समुंद्र का खारा पानी बादलों के साथ मिलकर मीठा हो जाता है और इस संसार के सभी जीवों को जीवन देकर फिर से समुंद्र में मिल जाता है।
5.तत्व को जानने वाले विद्वानों ने कहा है, हजारों चांडालों के समान एक यवन होता है, यवन से बढ़कर कोई नीच नही होता है।
Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter
6.तेल की मालिश करने के बाद, चिता के धुंए के स्पर्श के बाद, स्त्री से संभोग करने के बाद और हजामत करवाने के बाद मनुष्य जब तक स्नान नही कर लेता, तब तक वह अशुद्ध ही रहता है।
7.अपच होने पर पानी औषधि का काम करता है, खाना पच जाने के बाद पानी बल का काम करता है, खाना खाने के बीच में पानी पीना अमृत के समान है, लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर के समान हानिकारक होता है।
8.आचरण के बिना ज्ञान का होना व्यर्थ है, अज्ञान से आदमी नष्ट हो जाता है, अगर सेनापति ना हो तो सेना नष्ट हो जाती है और पति के बिना भी औरतें नष्ट हो जाती है।
9.वृद्धावस्था में पत्नी का देहांत हो जाना, धन दौलत का भाई बंधुओ के हाथ में चले जाना और भोजन के लिए दूसरों पर आश्रित रहना, ये तीनों बाते मृत्यु के समान दुखभरी होती है।
10.जो लोग यज्ञ नही करते है उनके लिए वेद पढ़ना बेकार है, दान दक्षिणा के बिना यज्ञ करना बेकार है, श्रद्धा और भक्ति के बिना किसी भी कार्य में कामयाबी नही मिलती अर्थात इंसान की भावना ही श्रेष्ठ है।
Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter
11.लकड़ी, पत्थर और धातु की मूर्ति में ईश्वर की भावना और श्रद्धा रखकर उसकी पूजा, भक्ति की जाए तो सिद्घि जरूर प्राप्त होती है और ईश्वर ऐसे भक्तों पर जरूर खुश होते है।
12.ईश्वर लकड़ी या पत्थर की मूर्ति में विद्यमान नही है, ईश्वर तो इंसान की भावना में विद्यमान होते है यानी जहां पर इंसान भावना द्वारा उनकी भक्ति करता है, वहीं पर ईश्वर प्रकट हो जाते है।
13.शांति से बड़ा कोई तप नही, संतोष से बढ़कर कोई सुख नही, लालच से बढ़कर कोई रोग नही और दयालुता से बढ़कर कोई रोग नही।
14.क्रोध यमराज के समान मृत्युदाता होता है, इंसान की इच्छाएं वैतरणी नदी के समान होती है, विद्या सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु गाय होती है और संतोष इन्द्र के नंदन वन के समान होता है।
15.गुणों से इंसान की सुंदरता बढ़ती है, शीलता से परिवार की शोभा बढ़ती है, कार्यों में सफलता से विद्या की शोभा बढ़ती है और धन के सही उपयोग से धन की शोभा बढ़ती है।
Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter
16.जो इंसान गुणहीन होता है, उसकी सुन्दरता बेकार होती है, जिस इंसान का आचरण शांत नही होता है उसकी परिवार और समाज में निंदा होती है, जिस इंसान में कार्यों को सिद्ध करने के शक्ति नही उसकी विद्या व्यर्थ होती है, इसी प्रकार जिस धन का सदुपयोग नही होता है वह धन भी व्यर्थ होता है।
17.धरती के अंदर का पानी शुद्ध होता है, पतिव्रता नारी पवित्र होती है, लोगों का भला करने वाला राजा पवित्र माना जाता है और संतोषी ब्राह्मण को भी पवित्र माना गया है।
18.संतोषहीन ब्राह्मण, संतुष्ट होने वाला राजा, शर्म करने वाली वैश्या और लज्जाहीन स्त्रियां जल्दी ही नष्ट हो जाती है।
19.अगर परिवार विद्याहीन है तो उनका विशाल और बड़ा होने का कोई लाभ नही है और अगर बुरे कुल में पैदा हुआ व्यक्ति विद्वान है तो देवता लोग भी उसकी पूजा करते है।
20.इस दुनिया में विद्वान लोगों की प्रशंसा होती है, विद्वान को ही आदर सम्मान और धन धान्य की प्राप्ति होती है, विद्या द्वारा हर वस्तु को प्राप्त किया जा सकता है, मतलब विद्या ही सब जगह पूजनीय है।
21.जो इंसान मांस और मदिरा का सेवन करते है, मूर्ख और निरक्षर इंसान इस धरती पर बोझ है, ऐसे इंसानों से यह धरती पीड़ित और दुःखी रहती है।
22.जिस यज्ञ के दौरान लोगों को भोजन नही कराया जाता है ऐसा यज्ञ उस देश को नष्ट कर देता है, अगर यज्ञ में पुरोहित अच्छे तरीके से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे नष्ट कर देता है और अगर यजमान लोगों को दान और भेंट ना दे तो वह भी यज्ञ से नष्ट हो जाता है।
निष्कर्ष,
इस पोस्ट में हमने आपको Chanakya Niti in Hindi Eight Chapter के बारे में बताया है। आशा करते है की आपको यह चाणक्य नीति का आंठवा अध्याय अच्छा लगा हो।
आपको इस चाणक्य नीति पोस्ट ने कितना प्रेरित किया, हमे कमेंट करके जरूर बताए और इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरुर करें।
धन्यवाद 🙏
इन्हें भी पढ़े,
No Comments
Pingback: चाणक्य नीति नवां अध्याय - Chanakya Niti in Hindi Ninth Chapter
Pingback: चाणक्य नीति, दसवां अध्याय - Chanakya Niti in Hindi Tenth Chapter
Pingback: चाणक्य के अनमोल सुविचार | Chanakya Quotes in Hindi