पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले चौहान वंश के अंतिम शासक थे, इन्हें एक योद्धा राजा के रूप में माना जाता है। इनको राय पिथोरा नाम से भी जाना जाता है।
जब वह 13 वर्ष के थे तब उनके पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई, तो उन्हें अजमेर की गद्दी पर बैठा दिया गया था। बाद में दिल्ली के शासक उसके दादा अंगम ने उसके साहस और बहादुरी के बारे में सुनकर उसे दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
इनका पूरा जीवन वीरता, साहस, वीरतापूर्ण कार्यों और गौरवशाली कारनामों की एक निरंतर श्रृंखला है। वह शब्दभेदी बाण विधा में बहुत निपुण थे।
आइए पढ़ते है इस पोस्ट में Biography of Prithviraj Chauhan in Hindi, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास के बारे में।
Biography of Prithviraj Chauhan in Hindi – पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
पृथ्वीराज ने मुख्यतः दिल्ली के सुलतान, मोहमद गौरी, और कानौज के राजा, जयचंद, जैसे प्रमुख मुस्लिम शासकों के खिलाफ युद्धों में अपनी बहादुरी और साहस से नम रखा। मोहमद गौरी के साथ ताराइसी युद्ध (1191 ई.) में, पृथ्वीराज ने अपनी सेना के साथ बड़े जोर-शोर से सामरिक साहस दिखाया और जीत हासिल की। इस युद्ध में उन्होंने गौरी को हराकर दिल्ली की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया।
जयचंद के साथ प्रिथ्वीराज का मुकाबला हुआ था ताराइसी के बाद, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की और अपनी शक्ति को बढ़ाया। पृथ्वीराज ने अपने युद्धक्षेत्र में निर्णायक योजनाओं और चतुराई के साथ मुस्लिम शासकों के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
पृथ्वीराज चौहान का जन्म और प्रारम्भिक जीवन
इनका जन्म वर्ष 1149 में राजस्थान राज्य के अजमेर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान था जो अजमेर के चौहान वंश के राजा थे और उनकी माता का नाम कपूरी देवी था।
पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी के बहुत शौकीन थे और शिकार करना उनका प्रिय खेल था। कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने बचपन में बिना किसी हथियार के एक शेर को मार दिया था।
पृथ्वीराज चौहान कई तरह की युद्ध कलाओं में निपुण थे लेकिन उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी शब्दभेदी बाण चलाना, मतलब वह बिना कुछ देखे सिर्फ आवाज के सहारे अपना शिकार कर सकते थे।
उनके नाना जो की दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान थे, उनकी इस तरह की प्रतिभा को देखकर बहुत खुश थे। इस कारण उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली की गद्दी का उतराधिकारी घोषित कर दिया और मात्र सोलह वर्ष की आयु में वह दिल्ली के राजा बने।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह
पृथ्वीराज चौहान ने अपने अनुभव और कौशल से बहुत से युद्ध जीतकर अपने राज्य की सीमाओं को गुजरात और पूर्वी पंजाब तक बढ़ा लिया था। इस कारण से कई राज्य के राजा उनकी प्रगति देखकर उनसे जलने लगे थे।
इन्हीं राजाओं में सें एक थे कन्नौज के राजा जयचंद, उनका राज्य दिल्ली के पूर्व में काफी दूर तक फैला हुआ था। लेकिन जितना वह पृथ्वीराज चौहान से ईर्ष्या करते थे उतना ही प्रेम उनकी पुत्री संयोगिता पृथ्वीराज चौहान से करती थी।
पृथ्वीराज चौहान भी संयोगिता की सुंदरता के कायल थे और वो भी उनसे मन ही मन में प्रेम करने लगे थे। जब राजा जयचंद्र को यह बात पता चली तो वह बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए।
इस कारण से राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री का विवाह करने का फैसला कर लिया और पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए एक योजना बनाई और उन्होंने संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें वह अपनी पसंद का वर चुन सकती थी।
राजा जयचंद्र ने देश के सभी छोटे बड़े सभी राजाओं को इसका आमंत्रण भेजा लेकिन पृथ्वीराज चौहान को नही भेजा। लेकिन इस स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान ने भरी सभा में संयोगिता का अपहरण कर लिया और भगाकर अपने अपने राज्य दिल्ली ले आए और वहां पर उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ विवाह संपन्न किया।
पृथ्वीराज चौहान और गौरी का प्रथम युद्ध
इस बीच अफगानिस्तान का शासक मुहम्मद शाबुद्दीन गौरी भारत की तरफ बढ़ रहा था और अपनी सेना लेकर पंजाब के भटिंडा तक आ पहुंचा।
यहां से पृथ्वीराज चौहान की सीमा चालू होती थी और पृथ्वीराज चौहान को हराना इतना आसान नही था लेकिन गौरी ने अचानक एक दिन भटिंडा के किले पर आक्रमण कर दिया और उस पर कब्जा कर लिया था।
पृथ्वीराज चौहान को जब इस बारे में पता लगा तो वह अपनी सेना को साथ लेकर भटिंडा के लिए निकल लिए और युद्ध करने लगे।
युद्ध में पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना ने गौरी की सेना के बहुत सारे लोग मार दिए थे, यह देखकर पृथ्वीराज चौहान की सेना में ओर ज्यादा उत्साह भर गया था। उन्होंने गौरी की सेना पर तीन तरफ से हमला किया था।
इतने कठिन मुकाबले की गौरी को कोई उम्मीद नही थी। इस युद्ध में गौरी अधमरा हो गया तो उसके सैनिक उसको लेकर भाग गए जिससे गौरी के प्राण बच गए।
इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने लगभग 7 करोड़ रुपए की सम्पदा अर्जित की थी, जिसे उन्होंने अपने सैनिकों में बांट दिया था। कई लोगो का मानना है की पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को 18 युद्धों में से 17 बार हराया था।
पृथ्वीराज चौहान और गौरी का दूसरा युद्ध
इधर अपनी बेटी संयोगिता के अपहरण के बाद जयचंद्र के मन में पृथ्वीराज चौहान के प्रति ओर ज्यादा कटुता बढ़ गई थी और उसने पृथ्वीराज चौहान को अपना दुश्मन मान लिया।
जब जयचंद्र को गौरी और पृथ्वीराज चौहान के युद्ध के बारे में पता चला तो वह गौरी से जाकर मिल गया था और फिर दोनों ने मिलकर वर्ष 1192 में पृथ्वीराज चौहान को युद्ध के लिए ललकारा।
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इस बार गौरी के पास एक विशाल सेना थी। पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को पिछली हार की याद दिलाते हुए गौरी की वापस जाने के लिए कहा।
इस पर चालबाज गौरी ने अपनी सेना थोड़ी सी पीछे हटा ली ताकि वह छल कपट की नीति अपना सके और अपनी सेना की तैयारी अंदर ही अंदर जारी रखी।
पृथ्वीराज चौहान को लगा की गौरी उनकी बात मान गया है और उसकी चाल समझ ना सके और सामान्य रूप से अपना पड़ाव डाले रहें।
एक दिन सुबह जब सारे सैनिक पूजा पाठ में लगे हुए थे तब गौरी ने उनके ऊपर हमला कर दिया और बुरी तरह से पृथ्वीराज के सैनिकों को मारने लगे।
इसी बीच धोखे से पृथ्वीराज चौहान को घेरकर और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया। धोखे की काट ना वीरता से होती है और ना साहस से, आखिरकार पृथ्वीराज चौहान जैसा वीर योद्धा धोखे का शिकार हो गया।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु
जब पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गौरी के दरबार में पेश किया गया तो पृथ्वीराज की आंखो का तेज देखकर गौरी घबरा गया और उसने पृथ्वीराज को नजर झुकाने को कहा।
लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने इस बात को नही माना और कहा सच्चे राजपूत की नजर केवल मृत्यु ही झुका सकती है और कोई नही।
यह सुनकर गौरी आग बबूला हो गया और उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल देने का आदेश दे दिया लेकिन वह पृथ्वीराज चौहान की आंखे अपने सामने झुकवा ना सका और आखिरकार उन्हें अंधा बनाकर कारगार में डाल दिया गया।
पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई से उनकी यह दुर्दशा देखी नही गई और उन्होंने गौरी के दरबार में हाजिर होकर कहा की पृथ्वीराज चौहान बिना देखे ही अचूक निशाना लगा सकते है।
गौरी को इस बात का विश्वास नही हुआ और उसने इस बात को परखने के लिए पृथ्वीराज चौहान को राज दरबार में बुला लिया।
पृथ्वीराज चौहान का इतिहास
उसके बाद एक धनुष बाण पृथ्वीराज चौहान के हाथ में थमा दिया गया और कहा की अब वह अपनी प्रतिभा दिखा सकते है। पृथ्वीराज ने कहा कि में एक राजा हूं, मैं किसी अन्य का आदेश नही मान सकता।
मैं तभी बाण चला सकता हूं जब स्वयं सुल्तान मुझे आदेश देंगे, इसके बाद गौरी ने उसको बाण चलाने का आदेश दिया। गौरी की आवाज सुनकर पृथ्वीराज चौहान को उसकी दिशा का अंदाजा लग गया।
तभी पृथ्वीराज चौहान के मित्र चंदबरदाई ने एक दोहा पढ़ा – चार बांस चौबीस गज, अंगूर अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके सुल्तान।
इस दोहे में उसने पृथ्वीराज चौहान को गौरी की दूरी बताई थी। अब पृथ्वीराज चौहान के पास गौरी की दिशा और दूरी दोनों का अंदाजा लग चुका था।
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गौरी की स्थिति का पूरा पता लगते ही पृथ्वीराज चौहान ने गौरी की तरफ शब्दभेदी बाण चला दिया जो सीधा जाकर गौरी के गले में लगा, जिससे गौरी के उसी वक्त प्राण निकल गए।
Prithviraj Chauhan Story in Hindi
इसके बाद अपनी दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने एक दूसरे को चाकू मारकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
इस खबर को सुनते ही पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता ने भी अपने प्राण त्याग दिए और इस तरह एक वीर योद्धा इतिहास के पन्नों पर कभी ना मिटने वाली छाप छोड़कर चला गया।
पृथ्वीराज चौहान मूवी – Prithviraj Chauhan Movie
पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में एक मूवी बनी है, जिसमें अभिनेता अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज चौहान की भूमिका निभाई है और मानुषी छील्लर उनकी पत्नी संयोगिता की भूमिका में है।
इस मूवी का निर्देशन चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा किया गया है वहीं इस मूवी के निर्माता यश प्रोडक्शन हाउस के तहत आदित्य चोपड़ा जी ने किया है।
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FAQ
पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1166 में गुजरात में हुआ था।
पृथ्वीराज चौहान कहाँ के राजा थे ?
पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के राजा थे।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई ?
युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गौरी के राज्य ले जाया गया, वही पर गौरी की शब्दभेदी बाण से हत्या करने के बाद पृथ्वीराज चौहान को उनके मित्र ने चाकू से वार करके मार दिया था।
दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपको Biography of Prithviraj Chauhan in Hindi के बारे में बताया है। हमें उम्मीद है की आपको यह पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय अच्छा लगा हो।
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